पंछी हूँ
पंछी हूँ
उड़ने दो मुझको
पिंजरों में ना क़ैद करो
उड़ना तो है स्वभाव मेरा
हवा से लड़ना मक़सद मेरा
ना है घर
ना ही ठिकाना मेरा
क्योंकि
पंछी हूँ
उड़ने दो मुझको
पिंजरों में ना क़ैद करो
सरहद भी न रोके मुझको
रस्ते गलियों की ना परवाह मुझको
कसमे वादों से क्या लेना है
मुझको तो बस उड़ते रहना है
क्योंकि
पंछी हूँ
उड़ने दो मुझको
पिंजरों में ना क़ैद करो
ये दुनिया साज़िश रचेगी
पिंजरों में क़ैद करेगी
मुझको ना क़ैद होना है
आसमां में खोना है
क्योंकि
पंछी हूँ
उड़ने दो मुझको
पिंजरों में ना क़ैद करो
अनुभव पांडे
Poetically by https://instagram.com/anubhav_writes?igshid=hcu2h8jiqlb5
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